Sarvajanik Karyakram - Public Program Date 24th March 2002 : Place New Delhi Public Program Type : Hindi & English Speech Language CONTENTS | Transcript | 02 - 10 Hindi 14 - 14 English Marathi || Translation 15 - 16 English 11 - 13 Hindi Marathi ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK Scanned from Hindi Chaitanya Lahari वो सबके अंदर है और स्थित है। उसके क. अंदर रंग, जाति-पाति कोई भेद नहीं। हर इंसान में है। जानवर में भी है। आपको आश्चर्य होगा कि जानवर प्यार बहुत समझते हैं। इंसान से भी ज्यादा जानवर समझते हैं प्यार क्या चीज़ है। तो हम लोग वाकई अगर अपनी उत्क्रान्ति में बढ़ रहे हैं, अपने Evolution में बढ़ रहे हैं तो हमारे अंदर प्यार का बड़ा जबरदस्त प्रकाश होना चाहिए। अगर प्यार आ जाए तो हमारे सारे प्रश्न जो हैं, जो मानव जाति के लिए पहाड़ सत्य को खोजने वाले आप सभी जैसे खड़े हैं, एक दम खत्म हो जाऐं। साधकों को हमारा प्रणाम | प्यार की हमने व्याख्याएं अनेक की हैं जिस चीज की आज हर जगह कमी है, पुर उसकी कोई व्याख्या नहीं कर सकता वो है प्रेम। यही प्रेम जो है यही प्रभु की क्योंकि वो एक सागर है हमारे अंदर बसा भक्ति है बहुत लोग जिस बात को शब्द हुआ एक महान सागर है और उसको समझते हैं, लेकिन प्रेम एक शब्द नहीं है। भोगना भी हमारे ही नसीब में है । उसकी प्यार एक शक्ति है और उसका भण्डार लहरें भी हमीं ज्ञात कर सकते हैं। हमारे हमारे ही अंदर है। हम सभी उस प्यार से ही लिए वह है। दूसरा चाहे उसे समझे या भरे हैं। कभी-कभी उसका अनुभव हमको न समझे लेकिन हमारे लिए वो एक बहुत आता है । हमको अनुभव आता है कभी कि बड़ी अदभुत शक्ति है। शक्ति कहने से जब हमारी माँ हमको दिखती है तो हमें लोग सोचते हैं कि कोई मानो प्रलंयकारी अनुभव आता है। लेकिन वो क्षणिक है और चीज है। वो शान्ति देती है, वो आनंद देती है। वो सुख देती है और दुनिया के सारे कभी-कभी वो स्वार्थी होता है। पर जिस प्यार की मैं बात कर रही हूँ वों है आत्मा प्रश्न समाप्त कर देगी अगर संसार इस का अपना प्रादुर्भाव, आत्मा का अपना प्रकाश। प्यार में लिपट जाए। ये प्यार जो हमारे Original Transcript : Hindi साथ साल दर साल अंदर ही छिपा बैठा अंदर आखिर इतना पैसा है. इतनी चीजे हैं है, अंदर ही कुम्हला रहा है, उस पर तो भी आखिर ये दुःखी क्यों है? अब पता अनेक आवरण हैं। सबसे बढ़ा आवरण है चला कि इन पर दुनियाँ भर की आफतें आई. दुनियाँ भर की परेशानियाँ आई । कि हम अपने को बहुत बड़ी चीज़ समझते हैं। आप स्वयं प्यार हैं, इससे बढ़कर आप कुछ समझ में नही आता कि इतना क्या हो सकते हैं? इससे आप कौन सी पैसा होते हुए भी उन पर इतनी आफतं बड़ी हस्ति हो सकते हैं कि आप प्यार हैं क्यों आई हैं। सों आजकल के जमाने में और प्यार ही हैं और कुछ नहीं हैं! ऐसी नई-नई आफतें आई हैं। पहले नहीं होती थीं इतनी जितनी आज हैं। गर आपके सबको स्वच्छ कर सके, सबके अंदर आनंद पास बहुत पैसा है तो न जाने कितने चोर भर सके दुनिया भर के कोई से भी प्रश्न आपके पास दौड़ेगें, न जाने कितने ठग हों, कोई सा भी प्रश्न हो, उसके पीछे क्या लग जाएगें, न जाने कितने लेकर आपमें शक्ति है जो सबको शान्त कर सकें. छुरा आपके पीछे दौड़ेंगे। न जाने क्या- क्या राक्षस बसे हैं और इसमें मनुष्य न जाने आफतें होगीं । सो पैसे से आदमी सुखी हो क्या मज़ी उठाता है, कौन सा उसे उत्साह नहीं सकता। आप देख लीजिए क्योंकि प्राप्त होता है, पर वो समझ ही नहीं पाता पैसे होने पर भी मनुष्य की लालच खत्म अपने को कि मैं क्या हूँ। मेरे पास भण्डारा नहीं होती उसको लगता है कि आज ये तो कल वो होना चाहिए। वो है. तो वो गली-गली में भीख माँगता फिरू? जो चीज़ होना चाहिए। उसकी लालच खत्म ही नहीं मेरे अंदर में उमड़ रही है उसको छोड़कर होती उस पैसे से क्योंकि उस पैसे में क्यों मैं ऐसी-ऐसी चीजों के पीछे दौड़ता समाधान देने की शक्ति नहीं। गर आपके है? द्वेष, नाराज़गी, अहंकार आदि बड़े-बड़े है जिस चीज का तो मैं क्यों दर-दर में, हूँ? पास पैसा है तो समाधान इसमें है कि बो गलत दिमाग और गलत विचारधारा से किसी को दे दें। गरीबों को बाँट दें, उनका ऐसा होता है। बहुत से लोगों को लगता है दुःख हल्का करें। तब आपको समाधान कि दुनिया में गर आपके पास पैसा हो तो मिलेगा। नहीं तो पैसे का कोई अर्थ नहीं । आप बहुत बड़े आदमी हो मैंने आज तक जो पैसा आप बाँट नहीं सकते वो पैसा किसी भी पैसे वाले को सुखी नहीं देखा। लक्ष्मी हो ही नहीं सकता। लक्ष्मी तत्व में मेरे पास जितने पैसे वाले आते हैं उनकी मैंने आपसे बताया है एक हाथ से देना शक्ल से ही पता चल जाता है कि ये कोई और दूसरे हाथ से आश्रय। तो दूसरों को बड़े भारी दुःखी आदमी हैं और ये पता गुर आप आश्रय दे रहे हैं. अपने पैसे के चलता है कि ये कोई करोड़पति हैं। इसके साथ. तो आपको आनंद आएगा। गर आप 3 Original Transcript : Hindi दुनिया की भलाई कर रहे हैं अपने पैसे से से होता है ऐसे सुन्दर तरीके होते हैं पैसे तो उस पैसे से आपको आनंद आएगा। देने के लेने के नहीं, देने के और उसमें गर वही पैसे आप संभाल-संभाल कर रखें, कभी-कभी इतना आनंद आता है कि उतना उसका पहाड़ बनाएँ और उस पर बैठ आनंद लाखों खर्चने से भी नहीं आता। ये जाएें, कोई भी आपके शक्ल में उसकी तो बात है कि मनुष्य कभी-कभी सिर्फ खुशी नज़र नहीं आएगी। ऐसे लोगों को अपनी शोहरत के लिए पैसे देता है। ये लोग जानते हैं और हँसते हैं उन कोई खास बात नहीं। पर तो भी वो बेहतर बहुत पर। देखते हैं कि ये आदमी इस तरह से है बनिस्वत इसके कि सारा पैसा अपने जा रहा है। ये कर रहा है। पर अब करे पास पड़ा रहे। अब दूसरी बात है इंसान को शौक है आएगी वो कभी समझेगा ही नहीं । वो कि वो सत्ता कमाए। सत्ता क्यों कमाए? सम्हलेगा नहीं और उस पैसे का आनंद सत्ता में क्या है? आपकी अपने ऊपर तो क्या? जब तक उसको अपनी अक्ल नहीं नहीं उठाएगा आज पैसा आया तो कोई सत्ता है नहीं। दुनिया भर में आप सत्ता और नई चीज़ में चला गया और पैसा करना चाहते हैं! माने हमारी बड़ी भारी आया तो वो और किसी आदत में चला Position हो जाए। सत्ता हो जाए, सब गया मनुष्य के पास पैसा आते ही न जाने लोग हमारे को सैल्यूट मारें। इसमें कौन वो बाहर की गन्दी -गन्दी बातें सीखने लग जाता है। ऐसी कोई चीज़ होगी ना पैसे में उतरते हैं तो कोई उनकी ओर देखता भी जिससे आदमी खराब ही क्यों सीखता है? नहीं। कोई उनको पूछता भी नहीं और वो शराब क्यों पीता है? औरतों के पीछे क्यों बड़े दुःखी हो जाते हैं कि एक जमाने में तो भागता है? पैसा आते ही साथ ऐसी कौन मेरे सामने दौड़ते थे अब मेरे पीछे भी नहीं सी बात होती है कि वह बिगड़ता ही जाता दौड़ते। ये ऐसी कौन सी बात है सत्ता के है, बिगड़ता ही जाता है, बिगड़ता ही जाता पीछे में लोग जाते हैं। एक साहब से मैंने है। या तो वह जेल में चला जाएगा, या पूछा तुम पैसा क्यों खाते हो? तुमने सत्ता सर्वनाश हो जाएगा। यही पैसा जो आपको पाई है तो उससे कुछ अच्छा काम करो । शोभा दे सकता है वह आपके सर्वनाश का कुछ लोगों की मदद करो। तो तुम सत्ता में कारण बन जाता है। प्यार के संगति से आकर के ऐसे गलत काम क्यों कर रहे आप यही सोचते रहते हैं कि किसको क्या हो? पैसे क्यों कमा रहे हो? झूठ क्यों दिया जाए। उसको किस तरह से सुशोभित बोलते हो? तो उन्होंने कहा मैंने इतनी किया जाए? उसको किस तरह से प्यार जताया जाए? और बड़े-बड़े सुन्दर तरीके मैंने कहा, "तुमने ये लागत लगाई क्यों?" सा सुख है? अंत में यही लोग जब सत्ता से लागत लगाई, वो तो मुझे निकालनी है। तो 4 Original Transcript : Hindi है। नहीं तो बेकार के इसलिए क्योंकि आप जीतने वाले नहीं थे। आज अमर हो गया आप अगर ऐसे ही खड़े हो जाएँ तो कोई लोगों को कौन जानता है। बेकार के, नहीं वोट देता। तो इसलिए आपने पैसे जिन्होंने अपनी सत्ता में सबको तकलीफ लगाए कि इस पैसे से मैं जीत जाऊँ। तो दी, गलत-गलत काम करे। थोड़े ही दिन जब तक आप लोगों को पैसा देते रहें में उन पर भी लोग उंगलियाँ उठाने लग तब-तक लोग समझेंगे कि आप किसी जाएँगे इस तरह के लोग संसार में, मैं काम के हैं। या कोई गलत काम करने मानती हूँ, बहुत कम हैं इसलिए क्योंकि लग जाएं तो लोग होंगे ये वास्तविक हम लोग बहुत चालाक हैं। अपने को बहुत | बात है। मैं कोई नई बात नहीं कह रही होशियार समझते हैं। हूँ। ये रोजमर्रा हम देखते हैं। पर वही आदमी, जब उसकी सत्ता खत्म हो जाती चकारी करते हैं। चकमा देते हैं, पैसा तो कोई उसे पूछता भी नहीं। कोई उसे बनाते हैं। इस तरह की झूठी बातें करते देखता भी नहीं। कोई उसे जानता भी हैं। उनका क्या हाल होता है वो मुझे बताने नहीं। कोई उसका मित्र भी नहीं होता। तो की कोई जरूरत नहीं है। तो ये सब करने क्या फायदा। सारी जिन्दगी अपनी सत्ता में की जरूरत क्या है? किसके लिए आप फँसे रहे। सारी जिन्दगी अपनी सत्ता के कर रहे खुश 1 तीसरे तरह के लोग होते हैं जो चोरी हैं? कोई कहेगा कि हमारे घमण्ड में फँसे रहे और आज आप कहाँ बाल-बच्चों के लिए कर रहे है। कल यही हैं? और अब आपको क्या मिला? ये मैं बाल-बच्चे आपको जूते लगाएँगे कि नहीं? नहीं कहती कि आखिरी दम तक हर आदमी आपका मान क्यों करेंगे? आपमें कोई चरित्र को उसके प्यार की शक्ति से कुछ लाभ नहीं तो आपका मान कौन करेगा? आपको होता ही है पर सबसे बड़ी चीज़ है जो कौन देखेगा? ये समझने की बात है कि ये आदमी प्रेम करता है और उसके बाद में सब व्यर्थ की लालसाएँ हैं और ये आपको उसके प्यार की जिसके ऊपर छाया पड़ती आपसे दूर रखती हैं। आप अपने प्यार को है, जिसने उसका उपयोग किया हो, जिसने समझिये। आपकी जिन्दगी में कोई ऐसे भी उसका दर्शन किया हो, जिसने भी इंसान आए जिन्होंने आपको प्यार दिया हो, उसका जलवा देखा है, वो पुश्त-दर-पुश्त उनको आप जिन्दगी भर नहीं भूल सकते याद रखा जाता है। याद ही की बात नहीं चाहे उन्होंने पैसा नहीं दिया; कुछ नहीं पर वो ही जलवा दूसरों में भी आता है दिया। पर उनका प्यार, प्यार जरूर याद और दूसरे भी अच्छा काम करने लग जाते रहेगा और आप याद करेंगे कि इन्होंने मेरी हैं और दूसरे भी उसी की तरह होने का ओर बहुत प्यार से देखा। मेरी ओर बहुत प्रयत्न करते हैं। ऐसे ही आदमियों का नाम प्यार का हाथ बढ़ाया था। ये समझने की Original Transcript : Hindi बात है कि हम रोज़ देखते हैं। कोई नई घिनौनी बात है। ऐसा घिनौना काम करना बात तो नहीं, कोई इतिहास की बात तो हमारे संस्कृति में मान्य नहीं है। हमारी नहीं, कि कोई किताबों में लिखी बात नहीं। कुछ बाईबल पढ़ने की ज़रूरत नहीं, कुरान एक दिन सारे संसार का मार्गदर्शन कर को जानने की ज़रूरत नहीं ये रोज़ की सकती है पर हमी अपनी संस्कृति को बात है। जब ये बात हम देख रहे हैं तो छोड़ कर के बैठे हैं! हर तरह से लज्जाशील हम किसलिए तलवार लेकर निकले हैं? रहना चाहिए। ऐसे बताया जाता है कि ऐसे हमारे अंदर जो बहुत सारी विकृतियाँ औरतों को लज्जाशील रहना चाहिए। ऐसा हैं ं है कि बाहर से सीख करके लोग ऐसे संस्कृति बड़ी ऊँची है । भारतीय संस्कृति वो इस तरह से बाहर आती हैं। मैं कहूँगी कि ईमानदारी की बात है कि कितने कपड़े पहनने लग गए कि जिसमें लज्जा लोग हमारे देश में, जैसे कोई छूत की को तिलांजली दे दी गई। लज्जा-वज्जा बीमारी लग रही है, पैसा खाते हैं। किसी कुछ नहीं। अरे भाई देवी के लिए कहा से पूछो, "ये कौन हैं?" ये पैसा खाते हैं "वो कौन हैं?" वो पैसा खाते हैं। जिसको अंदर अगर देवत्व है तो आप लज्जाशील देखो वो ही पैसा खाता है। और कोई रहेंगे। आप बेशरम जैसे कपड़े नहीं पहनेंगे। उनका वर्णन ही नहीं । ये ही बताया जाता आप बेशरम जैसे नहीं घूमेंगे। और अगर है कि ये पैसा खा रहा है, वो पैसा खा रहा घूमते हैं आप तो आप में देवत्व नहीं है है। अरे खाना वाना नहीं खाते, पैसा ही तो किसी ने कहा कि हनुमान जी तो नहीं खाते हैं? ऐसे लोगों को भी आप देखिए कि कपड़े पहनते हैं। तो क्या आप हनुमान जी गया है "लज्जारूपेण संस्थिता।" आपके अंत में उनका क्या हाल होता है। एक बार हैं? ये भी कोई Explaination है कि हनुमान हम ऐसे ही गए थे वहाँ बहुत भीड़ थी तो जी नहीं पहनते तो हम भी नहीं पहनते। कुछ लोग थे बेचारे सीधे-साधे। उन्होंने अब हनुमान जी को क्या पहनने की ज़रूरत नाक पर ऐसे हाथ रख लिया। मुँह पर थी? भई तुम लोग इंसान हो और तुम इस हाथ रख लिया। बात क्या है? वो बोले, ये देश के वासी हो तुमको क्या ज़रूरत है जी जैसे हम कपड़े नहीं पहनेंगे। पैसा खाया है। मैंने कहा आप लोगों ने बाकी देखिए तो सब लोग पहनते हैं। ऐसा नाक मुँह क्यों बंद करे हैं। कहने लगे कि कोई है जो कपड़े ठीक से नहीं पहनता तो इनको सूँघने से हम लोग भी वैसे ही हो हनुमान जी का उदाहरण ले लिया। महावीर जाएँगे ऐसा हमें डर लगता है। अरे ये जी का, महावीर जी एक बार अपने ही प्रांगण में ध्यान कर रहे थे तो श्री कृष्ण जी हमारे संस्कृति के हिसाब से ये बड़ी ने उनकी परीक्षा लेनी चाही। तो उनसे जा साथ जा रहे हैं न, इन्होंने बहुत देश का कि हनुमान बात बड़ी घिनौनी है। Original Transcript : Hindi कर कहा श्री कृष्ण जी ने कि "तुम मुझे लज्जा होती है। पर इंसान में लज्जा न हो अपना कपड़ा दे दो।" और उनका कपड़ा और बड़े अपने को समझते हैं, हम बड़े आधा फट गया था, तो भी वो ध्यान में थे। Modern हैं और ये हैं वो हैं। अरे भई अगर "ये आधा भी हमको दे दो " उन्होंने दे लज्जा नहीं है तो देवी तत्व से तो आप दिया। और फिर चले गए अपने शयन ग्रह हट गए। देवी तत्व में कहा जाता है कि में, अपने सोने की जगह में, जा कर अपने "लज्जारूपेण संस्थिता। इसलिए कभी कपड़े-वपड़े बदल लिए। वो एक छोटा सा -कभी उसका अतिक्रमण भी कर देते हैं। बच्चा बन के आए थे। वो ठीक है। वो चले होता है कभी-कभी। वो नहीं करना चाहिए। गए। अब देखिए कि उनके Statues बना अब आप घूँघट निकालो, बुका पहनो इसकी रहे हैं। इतने गंदे लोग हैं, इनको कोई शर्म कोई ज़रूरत नहीं है। जो चीज़़ लज्जाशील नहीं। इस तरह से महावीर जी का अपमान है वो उसकी आँखों में है उसको ज़रूरी करते हैं। ये तो हमारे यहाँ गलत बात है नहीं कि ये ढोंगपना करे। इसकी कोई कि जो गलत चीज़ है, उसी को ले करके ज़रूरत नहीं। पर मनुष्य में भी अतिक्रमण चलेंगे। उसको फट से पकड़ लेगे और कर जाए। मनुष्य में क्या है कि किस तरह उसी को ले कर के दिखाएँगे, सौ बार । से वो एक दम से इस तरह से विक्षिप्त हो मैं कहती हैं कि कुछ अक्ल रखो। ऐसे जाता है? कुछ बताना समझ में नहीं आता कहीं होता है? बिल्कुल शुरूआत में बताते कि क्या बताएँ । कुछ भी चीज़ ले लो, हैं कि आदम और हव्वा। उसमें से हव्वा उसको विक्षिप्त कर देना। ठीक है स्त्री में को जब पता चला उसको जब अनुभूति लज्जा होना। और लज्जा उसके अंदर की हुई कि हमें आगे का जानना है वो जो चीज़ है उसके अंदर में स्थित है ये देवी साँप था वो स्वयं साक्षात् कुण्डलिनी थी। तत्व-हरेक स्त्री में, हरेक पुरूष में लज्जा उसने जब बताया कि तुमको ज्ञान का एक देवी तत्व है। ऐसा कहते ही साथ वो फल प्राप्त करना है तब उसी वक्त उनको गए और चलो अब पर्दे लगाओ, ये करो वो ये ज्ञान हुआ कि हम ऐसे नंगे घूम नहीं करो, घुंघट निकालो। अरे भई ये अंदर की सकते हैं जानवरों जैसे हमें कुछ पहनना चीज़ है। स्त्री के अंदर की चीजज़़ है । चाहिए । फौरन उन्होंने पत्तियों से अपने लज्जारूपेण संस्थिता। और उसमें अनेक कपड़े बनाये और पहन लिए। सर्वप्रथम ये बातें निहित हैं अब जैसे छोटी सी बात है ज्ञान होना चाहिए कि हम इंसान हैं जानवर अपने दोनों कंधों में दो चक्र हैं। Right में नहीं। हम जानवर जैसे नहीं रह सकते। । हालाँकि कुछ-कुछ जानवर इंसान से भी ये हम सिद्ध कर सकते हैं । आप उसको अच्छे होते हैं मैं मानती हूँ पर उनको भी खोले फिरोगे तो नुकसान होगा आपको । 1 श्री" चक्र है और Left में 'ललिता' चक्र है Original Transcript : Hindi होना ही है । किस तरह का नुकसान होगा शरमाऐंगे। लेकिन अंदर से प्यार। प्यार ही वो मैं बताना नहीं चाहती। कभी विस्तारपूर्वक उनका जीवन और प्यार उनके जीवन का बताऊँगी, पर क्यों ऐसा करते हो? क्या सार। दूसरा उनको किसी चीज़ से कोई ज़रूरत है? पर पुरूष में ज़रूरी नहीं । नहीं। आप उनको कोई और चीज़ दे दीजिए पुरूष में ये बात नहीं। उनमें ये दोनों चक्र वो समझ नहीं पाएँगे इसमें क्या विशेषता बिल्कुल पूर्णतया खुले हुए हैं पर स्त्री के है । पर उनकी माँ को हटा लीजिए या लिए क्योंकि वह शक्तिशाली है उसके लिए उनकी नानी से हटा लीजिए तो बड़ा बुरा ति जरूरी है उसे ढकना। अब ये समझने की हाल हो जाएगा। ये किस वजह से होता बात है इसमें कोई दकियानूसीपने की बात है। ये इतना छोटा सा बच्चा ये चीज़ कैसे नहीं। जिस चीज़ में आप दकियानूसी हैं वो जानता है और हम लोग क्यों नहीं जान बेवकूफी है। लेकिन जिस चीज़ में आप पाते? हम लोग ये क्यों नहीं जान पाते कि सतर्क हैं वो चीज़ ठीक है। सो सबसे बड़ी ये चीज़ इस बच्चे में इतनी प्रगल्भ है, चीज़ है कि प्यार में मनुष्य एकदम सतर्क इतनी developed है और हम लोग जो होता है। कहीं कुछ हो गया उसे पता चल अपने को बड़े भारी विद्वान समझते हैं जाता है। कहीं कुछ हो गया उसे समझ में हममें क्यों नहीं? क्योंकि विद्धता जो है वो आ जाता है। कहीं कुछ बात हो जाती है अंधेरे में हम विद्वान हैं अंधेरे के, उजाले वो परेशान। कहीं कोई औरत है, बेचारी के नहीं। हमें ये नहीं मालूम कि कौन सी उसने आत्महत्या कर ली। तो एक मुझे चीज़ हमें आह्लादित करती है। कौन सी लड़की मिली। मैंने कहा तुम क्यों परेशान चीज हमें आडोलित करती है। कौन सी हो। कहने लगी उसने आत्महत्या क्यों चीज़ से हमें सुख प्राप्त होता है और दूसरों की। छोटी सी लड़की 10 साल की मैंने को समाज को किस चीज़ से सुख मिलेगा कहा तुमसे किसने बताया। किसी ने बताया इस चीज़ को हम समझते नहीं। हम लोगों नहीं मैंने अखबार में पढ़ा कि उसने ने अपनी बना ली हैं प्रणालियां कि भाई आत्महत्या कर ली। अब ये जो खिंचाव ऐसे अवदान पहनो तो सुख मिलेगा। किसी अनभिज्ञ इंसान से, unknown आदमी से हो, ये क्या बात है। और छोटे बच्चों में में मालाऐं पहन के घूमो, ये करो वो करो । ये होता है। बात ये है-बच्चे जो हैं तो हम बहुत बड़े आदमी हो गए। हमारी अब बड़े आदमी हो गए, गले में, कण्ठ बहुत बहुत ही ज्यादा निष्पाप, innocent. दुनिया पूजा करेगी। हमें बहुत बड़ा वो निष्पापिता में, स्वच्छता में उनको खसोटता समझेगी। लेकिन ये अपने से भी धोखा है, उनको दिखता है। गलत काम ये नहीं देना है और लोगों को भी धोखा देना है। होना चाहिए। वो रूठेंगे आपसे, वो आपसे गुर आपको अपने को धोखा देना है तो देते 8. Original Transcript : Hindi हम बह गए दुनिया भर की चीजे होती ही । रहिए। अंत में उसका फल आप पाइयेगा दुनिया समझ जाएगी कि आप कितने गहरे रहती हैं। चलती ही रहती हैं। उसकी गर पानी में हैं। सबसे बड़ी चीज़ है कि जो ऐसी बात, किस बात से आपको आनंद आपका धन आपके अंदर प्यार का सागर आएगा ये देखना चाहिए। जब आप आनंद है उसको आप प्राप्त कीजिए । सहजयोग का यही कार्य है सहजयोग कोई कहे कि मुझे बड़ा आनंद आ रहा है आपकी कुण्डलिनी जागृत करता है। तो ये कोई कहने की बात तो नहीं है ये तो कुण्डलिनी आपके जीवन का पूरा छाप है। होने की बात है। पर जब ये घटित होता है उसको उठा करके और सहस्रार में बैठाना। तो कुछ कहना नहीं पड़ता। अपने आप ही सहस्रार आडोलित हो जाता है, प्रकाशित दिखाई देता है। आपका जीवन ही प्रज्जवलित हो जाता है और उससे आपको आनंद के हो जाता है और आपके जीवन से हज़ारों का अनुभव करेंगे. उसी से आनंद आएगा। है। आप देखते हैं लोग उसे प्राप्त करते हैं। आनंद प्राप्त सागर का अनुमव होता कि आप आनंद का सागर हो गए। फिर करते हैं। आज सहजयोग में आप लोग आप देखते हैं कि आप प्यार का सागर हो आए और यहाँ आकर आपने भी उस चीज़ गए। आपको आश्चर्य होता है कि आप तो को पा लिया आपका भी संबंध हो गया ऐसे कभी थे नहीं। आप ऐसे कैसे हो गए। Connection हो गया अब इसको जमाए अरे आप थे आप को मालुम नहीं था। रखो और उसका आनंद उठाओं। उसके अब कुण्डलिनी ने आपका संबंध कर दिया । आगे बाकी सब चीजे तुच्छ हैं। कोई लिखेगा अब ये देखिए । इसका संबंध ये जो चारों माँ अभी मैं पार तो हो गया पर मुझे खुशी ओर फैली हुई बिजली की शक्ति है उससे ही नहीं होती ये तो ऐसा ही है कि हो गया। अब देखने को तो इतना छोटा Connection कुछ कम है। माँ मैं पार तो 1 सा लग रहा है। पर इसका संबंध होते ही हो गया पर अभी मैरे घर में पैसा नहीं साथ बिजली क्रियान्वित हो गई। ऐसे ही आया। इसका मतलब आप पार नहीं हुए। कुण्डलिनी का संबंध होते ही आप कार्यान्वित ऐसे बकवास जितने लोग करते हैं उनकी हो जाते हैं। जिन सहजयोगियों ने सहज जो चिट्ठियाँ आती हैं वो मैं बंद करके को पाया है। मैं कहुँगी इसको सहज से रखती हैँं और उनसे कहती हैं कि तुम पाया है। और पाया क्या है, वो प्यार का ज़रा थोड़ा और अभी try करो। जब आदमी सागर जो हमारे मस्तिष्क में, जो हमारे पार हो जाता है तो वो बदल ही जाता है। सहस्र में क्या कहना चाहिए, दबा हुआ है उसकी इन्सानी मोहब्बत प्यार में बदल चो आज खुल गया। उसका संबंध हमारा जाती है। वो एक दूसरा ही प्राणी हो जाता हो गया और वो बह गया । उसके प्रवाह में है उनकी शक्ल ही बदल जाती है। कुछ Original Transcript : Hindi देखते ही बनता है। अभी एक साहब आये से आप गलत रास्ते पे जाते हैं। स्वयं को थे इंग्लैण्ड से, बड़े मरीज, बीमार, मरीगल्ले नष्ट करने का Self destructive काम करते लग रहे थे। अभी आए मैंने पहचाना नहीं। हैं। तो क्या फायदा ऐसे अहंकार से कि आपने पहचाना नहीं। मैंने नहीं पहचाना जिससे आप अपने ही को नष्ट करते हैं? भाई, तुम कौन हो? मैं वो हूँ। और कह उसका बोलना अलग, चलना अलग, ढाल कर पैर पर गिर गए। मेरे भी ऑखों से अलग। और उस अहंकार में वो किसी से आँसू आ गए। जो आदमी अपने मरने के मिलते नहीं। किसी से उनका पटता नहीं। दिन गिन रहा था आज उसका ये हाल हो, वो अपने अलग रहते हैं। मुझे ये आदमी पसंद नहीं। मुझे वो आदमी पसंद नहीं। वो और ये अहंकार की जो बीमारी है इसका कभी भी किसी भी तरह से सम्मिलित नहीं तो नाम लेते ही गला सूख जाता है। ऐसा होते कभी भी वो दूसरों की बात नहीं ये पागलपन है। ऐसा ये स्वंय को नष्ट सुनते अपनी सुनाते रहते हैं। ऐसे अहंकारी करने वाला एक राक्षस है जो कि आपको आदमी का जीवन माने मरने से भी बदतर। एकदम खत्म कर देगा और आप उसको एक साहब मैं, जानती थी, बड़े अहंकारी Justify करते रहते हैं। उसको आप कहते थे बहुत बड़े आदमी थे पालर्लियामेंट में थे हैं ठीक है ठीक है। इसलिए मैंने किया जाने कहाँ-कहाँ । पर जब वे मरे हैं तो उसलिए मैंने किया। किस लिए किया हो चार आदमी उनको उठाने के लिए नहीं सो सिर्फ तुम्हारे अंदर अहंकार भरा है। मिले। चार आदमी । तो उनको किराए पर अहंकार इंसान में भरना तो इतना खराब चार आदमी बुलाने पड़े कि भाई इनकी है कि उससे खराब तो मैं सोचती हूँ कि लाश को उठाओ। ऐसे अहंकार से क्या कोई चीज़ हो ही नहीं सकती। मैं कोई फायदा कि मरते वक्त वहाँ पर चार आदमी विशेष हूँ मेरा ऐसा है। और फिर उससे भी नहीं थे और कोई रिश्तेदार भी नहीं । जब वो देखता है कि मुझे कुछ लाभ नहीं कोई मिलने वाला भी नहीं। कोई कहने हुआ। लोग मुझे देखते भी नहीं। कोई मुझे वाला भी नहीं । इंसान से मानो उठ गए पूछता भी नहीं। तब वो ठीक होते हैं। वो। और उनका मानो कुत्ता था वो भी नहीं फायदा क्या? पूरी तरह से आपने अपना वहाँ खड़ा हुआ। मैने कहा भई हद हो गई गया। नुकसान कर लिया। उसके बाद आप इस आदमी ने ऐसा कौन सा पाप कर्म अहंकार, इसको कहते हैं ठीक करना। हर किया सिवाय इसके कि उसमें बहुत अहंकार एक चीज़ से अहंकार चढ़ता है। पैसा हो था इस अहंकार में उनकी यह दशा हो तो, सत्ता हो तो, और भी कोई चीज़ हो तो गई कि मरते वक्त उनको कोई उठाने अहंकार चढ़ता है। और फिर उसी अहंकार वाला भी नहीं! 10 HINDI TRANSLATION (English Talk) Scanned from Hindi Chaitanya Lahari मैं प्रेम के विषय में बहुत कुछ बता चुकी क्या लाभ होगा। हूँ परन्तु मुझे ये सब हिन्दी में बताना पड़ा | परन्तु प्रेम के विषय की अभिव्यक्ति हिन्दी में भी जाएंगे तो वो आपसे बैठने के लिए में ही बेहतर होती है। आप देखते हैं कि कहेगा, दूध आदि पेय आपको पेश करेगा । प्रेम करने की क्षमता भारत में बहुत अधिक उनके हृदय बहुत विशाल हैं। आजकल है। अपने प्रेम के सहारे लोग जीवन बिता हम लोग भी बहुत धन लोलुप होते चले जा लेते हैं। लोग एक दूसरे को अपने प्रेम के रहे हैं, इसमें कोई सन्देह नहीं । इस देश में माध्यम से समझते हैं। निःसन्देह पश्चिमी बहुत अधिक धन नहीं है इसीलिए लोगों में संस्कृति में रंगे भारतीयों में इस गुण का प्रेम करने की क्षमता बनी हुई है। इस बात अभाव है। पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित पर आपने ध्यान दिया होगा आप सब भारतीय के मन में तो अपने देश के लिए लोग आजकल यहाँ हैं, आप देखते हैं कि भी प्रेम नहीं है अपने देश को प्रेम करने भारतीय कितने प्रेममय हैं। परन्तु आधुनिक वाले बहुत से लोग हैं। हमारे यहाँ भी ऐसे भारतीय ऐसे नहीं है। आधुनिक भारतीय से लोग हैं। कुल मिलाकर भारतीय तो आप लोगों का मुकाबला करते हैं। मैं भारत में आप यदि किसी निर्धन के घर बहुत लोग अत्यन्त प्रेममय हैं। आप यदि किसी उनके विषय में कुछ नहीं कह सकती। के घर पर जाएं तो वो आपसे प्रेम करते हैं परन्तु पारंपरिक लोग, भारतीय संस्कृति में आपको खाना आदि खिलाकर वो बहुत विश्वास करने वाले वृद्ध लोग अत्यन्त प्रसन्न होते हैं। घर में यदि कुछ उपलब्ध प्रेममय हैं। यही कारण है कि तीन सौ वर्ष न हो तो वो तुरन्त बाहर से लाते हैं। वे के अंग्रेजी साम्राज्य के बाद भी हम जीवित अपने मित्रों को बताते हैं, टेलिफोन करते हैं और हमने अपनी संस्कृति को बनाया हैं। अतिथि की वो सेवा करते हैं। यह हुआ है देश के प्रति उनके प्रेम के कारण प्रेम - भाव पूरे विश्व में अन्यंत्र कहीं नहीं है। ही ये सब संभव है। ऐसे प्रेममय लोग कहीं भी नहीं। अतिथि की सेवा में प्रायः आपको कहीं अन्य नहीं मिलेंगे । किसी गाँव लोगों को विश्वास ही नहीं है। अन्य देशों में या कहीं अन्यंत्र आप जाएं तो लोग में कहीं भी आप जाएं, लोगों का नजरिया आपकी सहायता करने का प्रयत्न करेंगे । अत्यन्त लेखे जोखे वाला होता है कि इससे आपके विदेशी होने के कारण वे आपका ज 11 Hindi Translation (English Talk) सम्मान करेंगे विदेशी या विदेश से आया उन्होंने सब कुछ लौटा दिया। अतः विदेशी व्यक्ति हमारे लिए सम्मानजनक होता है। हमारे लिए सम्मानजनक होते हैं, प्रेम के आपको पुकारने या निमंत्रित करने के उनके तौर-तरीके अत्यन्त सम्मानजनक होगे। विदेशियों के प्रति यहाँ के लोग अत्यन्त योग्य। परंतु पश्चिम में मैंने ये बात कहीं भी नहीं देखी । नि:संदेह सहजयोगी इस मामले में भिन्न हैं । पश्चिमी देशों में विदेशियों सम्मान दर्शाते हैं। परन्तु विदेशों में किसी अन्य देश से पर शक किया जाता अ० है। अत्यन्त आश्चर्य की बात है कि ईसामसीह के देश आए हुए व्यक्ति को बहुत तुच्छ माना में इस प्रकार का स्वभाव व संस्कृति कैसे आई! उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य तो प्रेम था। जाता है। आप यदि विदेशी हैं तो आप उनकी दृष्टि में बहुत तु चछ हैं। ओह, विदेशी हैं. ठीक है! फिर क्यों उन्हें मानने वाले पश्चिमी परन्तु यहाँ पर विदेशियों के साथ देशों में इस प्रकार की संस्कृति पनपी, मैं नहीं समझ पाती। ऐसा व्यवहार नहीं होता। यहाँ पर लोग आपकी सराहना करें गे, आपको समझेंगे और आपको उनके सम्बन्धों की अभि -व्यक्ति में किसी को प्रेम करना प्रेम करेंगे। अपने प्रेम को वो अभिव्यक्त करेंगे। मैंने कभी किसी अपराध माना जाता है। अब आप लोग सहजयोगी को विदेश में अपमानित होते यहाँ आए हैं, आप सहजयोगी हैं, आप उन्हें हुए या कष्ट उठाते हुए नहीं देखा। वे ऐसा ये सब सिखाएं। उन्हें केवल प्रेम एवं नहीं करते। एक बार ऐसा हुआ कि चोरी करुणामय ही नहीं होना विदेशों से आए हो गई और चोर कैमरे आदि ले गए । तो लोगों की भावनाओं को भी समझना है। मैंने उनसे कहा, कि वो विदेशी हैं आपके निर्धन देशों से आए लोगों की देखभाल भी विषय में क्या सोचेंगे। छोटे-छोटे बच्चों ने करनी है। इस चीज़ का इतना प्रसार होना ये कार्य किया था मेरी बात को सुनकर चाहिए कि हम निर्धन लोगों की सहायता में 12 Hindi Translation (English Talk) जुट जाएं और कष्टों से धिरे लोगों को प्रेम धर्म के प्रचार के लिए धन दिया करते थे । करने लगे। ये गुण सभी विदेशियों में पनपना आपको केवल इसलिए लोगों की सहायता आवश्यक है, विशेष रूप से सहजयोगियों करनी चाहिए क्योंकि उन्हें सहायता की में कि वे उन लोगों के प्रति अपने हृदय में आवश्यकता है। हो सकता है कि अगले प्रेम विकसित करें जिनके पास वो सब जन्म में आपको भी सहायता की आवश्यकता कुछ नहीं है जो हमारे पास है मैं आपको पड़े। अत: बेहतर होगा कि इस प्रकार की बताना चाहूँगी कि आस्ट्रिया से आई एक उदारता, प्रेम और सूझ-बूझ को अपना लें महिला से मिलकर मुझे बहुत प्रसन्नता और सभी मानवीय समस्याओं को समझें। हुई। वह यतीमखाना शुरु करना चाहती मैं आपको बताती हूँ कि हमारी सारी थी। कहने लगी. "श्रीमाताजी हमें भी अवश्य समस्याएं, विश्व की सभी समस्याएं, सच्चे कुछ करना चाहिए।" मुझे बहुत प्रसन्नता प्रेम से सुलझाई जा सकती हैं। इन सभी हुई मैंने उससे कहा कि चिन्ता मत करो मैं समस्याओं का समाधान हो सकता है चाहे तुम्हें सभी कुछ दूंगी। मैं तुम्हें भूमि दूंगी ये भारत की समस्याएं हों या अन्य देशों और भवन भी बना कर दूंगी तुम्हें केवल ये की। केवल प्रेम की कमी है । अतः अनाथालिय चलाना है। कहने लगी आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करें; आत्मसाक्षात्कार श्रीमाताजी हम तो इस कार्य के लिए 80 प्राप्त करके, चाहे इस बात को आप माने लाख रुपये एकत्र कर चुके हैं। हे परमात्मा, तुमने किस प्रकार इतना धन एकत्र कर लिया? सभी से ये धन एकत्र किया गया। या न माने, आप प्रेम सागर में उतर जाएंगे। परमात्मा आपको धन्य करे। मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। अन्यथा लोग ईसाई 13 ORIGINAL TRANSCRIPT ENGLISH TALK I have already spoken a lot about love. It is the loving capacity in India that I was referring to. On the whole they love you. Once you go to their house they entertain you with all hospitality. In India especially you go to a poor man's house. They will offer you milk still. Especially, the traditional people who still hold the culture are extremely loving! That is the reason why we are still surviving even after 300 years of British rule. On the topic of foreigner, Shri Mataji said, Indians basically love people. If I say you foreigner. It doesn't mean anything wrong. You are appreciated and Indians express their love. You are safe and secured. But if you are told as foreigner outside this country may be there you may be troubled or something wrong is expressed. Of course there was something in the past that happened. But as I told them. There were kids who stole cameras and other items. But when I told them they are foreigners they immediately returned the items. You should also be kind and loving. All these should spread. We should come forward to help those who are not rich or are needy. I was extremely happy with an Austrian lady who told me Mother we are starting an orphanage. So I said, I would give you money assistance for land. But She said Mother we have already collected eighty lakhs for the same from Sahaja Yogis and also from outside. So that is the love and the understanding one should have within oneself. All the world problems can be resolved through love. That's why you must take your self-realization. You will all fall into the ocean of love. 14 ENGLISH TRANSLATION (Hindi Talk) I pay my respect to the seekers of truth who have gathered here today. What is basically lacking everywhere is the Love. All persons take it as a mere word or expression. Love basically is the potential power within us. We do experience or feels it when we look at our Mother. What I am trying to say is that it is the Spirit enlightenment with in oneself. There is no discretion. It doesn't distinguish or is discrete between any animals or human. I sometime feel animals better understand the love. In fact the element of hatred should completely be finished from the human. Love is an ocean within and you find their tide within us. It is basically the power within us. By speaking of power one immediately takes it as something destructive state (Pralaya) but in fact it give us the inner peace. It is latent inside. It is covered inside. It is the power of love within ourselves that cleanse us and brings happiness and joy with in. If we see.... We have enemies residing within ourselves in the form of Rakshasa, cession and pleasure like consumption of liquor or spending on women. This money always goes into spending in sinful lifestyle. But at times by giving it to others you can get so much joy. Next I find persons run after power and position. Why after power and position? One feels everyone should salute me! Why? It is this power that when one descends down they then repent. They feel that once people used to run after me when I was in power and now they even do not like to come near me. Once I asked a person why do you want to possess power and position? He said that he wanted to do good to the people. But you know no body cares for a person whose powers and positions are lost. For the entire life one is entangled with power and position. What does he achieve? A person who knows how to love gets the actual recognition. He witnesses all this shortcomings and rise and falls of life style and it does not affect him. The third is the person who is pretends to be cleaver, like thieves who steals or robs or become imposter. Why are you doing this act? Who is going to respect you? These are basically the greed in and keep you away from yourself. A person is always remembered who gives love to all. May be he has not given money but he is remembered. He may not speak verses from Koran or Bibles or any thing but knows how to give love. so why coming out for waging war? Everywhere I hear he takes money ... he had taken (eaten...as in Hindi language) money. if that is the case why don't you eat money only? Once I saw a person is going and all others have covered their face and avoiding him. So I asked one what is the matter? He said Mother that man has taken (eaten) a lot of wrong practice and stinks. So, if we don't take care by covering ourselves we shall also be infected. Next, I find passion on wearing cloth. Putting on wrong cloth with fashion. You start giving explanations to0. You fashion like that and then say Hanumanji also wore no cloth! But, why you are human being why do you want to be Hanuman. Once, Shri Krishna came down to Shri Mahavira while he was meditating. He asked for his cloth and Mahavira gave his entire cloth out of generosity. But, now see people these days they are building and erecting Statues of Mahavira portraying him nude. In the beginning Adam and Eve were without cloths. Then the serpent came up from the fruit they had. The serpent was the Kundalini. When they got the awakening they got the knowledge and covered themselves up to cover their nudity. I don't understand why there is so much of shamelessness. What is human? Why are they so much distracted? one should possess Lajja (Shame) it is basically the "Devi tattwa" within human being especially the ladies. It is an expression from within. You have two Chakras in the two shoulders. One in the left is "Shri Lalit Chakra" and the one on the right is a Shri “Shrichakra". For ladies especially you must cover these two chakras and should not leave it open. I do not want to tell you what horrible disease you money through 99 66 15 English Translation (Hindi Talk) contact. But in men however, it is not necessary while in ladies it is very sensitive and must cover the shoulders...then Speaking up on innocence Shri Mataji said... Once a young girl of 10 years asked after hearing from someone why someone had committed suicide? Just see what impact it really gives to the innocence of the child. It is the innocence within us that matters. Why such innocence is not within us? We are intellect of darkness! We are ignorant. How do you expect that you and bring happiness to the society? Now if you move around with garland in your neck and make people think that you are great human being... What is going to happen to others? The prime objective of life is to... could give joy So today you have come here. You have also got your connection. You be happy. One may say Mother, I have experience this but, still I could not find happiness or peace within or for that matter Mother I have attained this but, I am yet to gain money in home. You have to leave all these....and the connection! ... get Speaking on Ego Shri Mataji referred to a person... Once there was a gentle man came up to Me and said please save me. I could not recognize this diseased person at all. He was horrible with ego. Why then justify your ego's blunder .You actually go to a wrong path with ego.... Then She narrated another story ... Once, I knew a person who was an erstwhile parliamentarian who died. After his death there were not even four available near him to carry his body. Even he had a dog that did not turn up at the last stage. Why this should happen? Only because he had ego problem with him. One should forsake his ego. persons 16 ---------------------- 20020324_Sarvajanik Karyakram - Public Program_New Delhi.pdf-page0.txt Sarvajanik Karyakram - Public Program Date 24th March 2002 : Place New Delhi Public Program Type : Hindi & English Speech Language CONTENTS | Transcript | 02 - 10 Hindi 14 - 14 English Marathi || Translation 15 - 16 English 11 - 13 Hindi Marathi 20020324_Sarvajanik Karyakram - Public Program_New Delhi.pdf-page1.txt ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK Scanned from Hindi Chaitanya Lahari वो सबके अंदर है और स्थित है। उसके क. अंदर रंग, जाति-पाति कोई भेद नहीं। हर इंसान में है। जानवर में भी है। आपको आश्चर्य होगा कि जानवर प्यार बहुत समझते हैं। इंसान से भी ज्यादा जानवर समझते हैं प्यार क्या चीज़ है। तो हम लोग वाकई अगर अपनी उत्क्रान्ति में बढ़ रहे हैं, अपने Evolution में बढ़ रहे हैं तो हमारे अंदर प्यार का बड़ा जबरदस्त प्रकाश होना चाहिए। अगर प्यार आ जाए तो हमारे सारे प्रश्न जो हैं, जो मानव जाति के लिए पहाड़ सत्य को खोजने वाले आप सभी जैसे खड़े हैं, एक दम खत्म हो जाऐं। साधकों को हमारा प्रणाम | प्यार की हमने व्याख्याएं अनेक की हैं जिस चीज की आज हर जगह कमी है, पुर उसकी कोई व्याख्या नहीं कर सकता वो है प्रेम। यही प्रेम जो है यही प्रभु की क्योंकि वो एक सागर है हमारे अंदर बसा भक्ति है बहुत लोग जिस बात को शब्द हुआ एक महान सागर है और उसको समझते हैं, लेकिन प्रेम एक शब्द नहीं है। भोगना भी हमारे ही नसीब में है । उसकी प्यार एक शक्ति है और उसका भण्डार लहरें भी हमीं ज्ञात कर सकते हैं। हमारे हमारे ही अंदर है। हम सभी उस प्यार से ही लिए वह है। दूसरा चाहे उसे समझे या भरे हैं। कभी-कभी उसका अनुभव हमको न समझे लेकिन हमारे लिए वो एक बहुत आता है । हमको अनुभव आता है कभी कि बड़ी अदभुत शक्ति है। शक्ति कहने से जब हमारी माँ हमको दिखती है तो हमें लोग सोचते हैं कि कोई मानो प्रलंयकारी अनुभव आता है। लेकिन वो क्षणिक है और चीज है। वो शान्ति देती है, वो आनंद देती है। वो सुख देती है और दुनिया के सारे कभी-कभी वो स्वार्थी होता है। पर जिस प्यार की मैं बात कर रही हूँ वों है आत्मा प्रश्न समाप्त कर देगी अगर संसार इस का अपना प्रादुर्भाव, आत्मा का अपना प्रकाश। प्यार में लिपट जाए। ये प्यार जो हमारे 20020324_Sarvajanik Karyakram - Public Program_New Delhi.pdf-page2.txt Original Transcript : Hindi साथ साल दर साल अंदर ही छिपा बैठा अंदर आखिर इतना पैसा है. इतनी चीजे हैं है, अंदर ही कुम्हला रहा है, उस पर तो भी आखिर ये दुःखी क्यों है? अब पता अनेक आवरण हैं। सबसे बढ़ा आवरण है चला कि इन पर दुनियाँ भर की आफतें आई. दुनियाँ भर की परेशानियाँ आई । कि हम अपने को बहुत बड़ी चीज़ समझते हैं। आप स्वयं प्यार हैं, इससे बढ़कर आप कुछ समझ में नही आता कि इतना क्या हो सकते हैं? इससे आप कौन सी पैसा होते हुए भी उन पर इतनी आफतं बड़ी हस्ति हो सकते हैं कि आप प्यार हैं क्यों आई हैं। सों आजकल के जमाने में और प्यार ही हैं और कुछ नहीं हैं! ऐसी नई-नई आफतें आई हैं। पहले नहीं होती थीं इतनी जितनी आज हैं। गर आपके सबको स्वच्छ कर सके, सबके अंदर आनंद पास बहुत पैसा है तो न जाने कितने चोर भर सके दुनिया भर के कोई से भी प्रश्न आपके पास दौड़ेगें, न जाने कितने ठग हों, कोई सा भी प्रश्न हो, उसके पीछे क्या लग जाएगें, न जाने कितने लेकर आपमें शक्ति है जो सबको शान्त कर सकें. छुरा आपके पीछे दौड़ेंगे। न जाने क्या- क्या राक्षस बसे हैं और इसमें मनुष्य न जाने आफतें होगीं । सो पैसे से आदमी सुखी हो क्या मज़ी उठाता है, कौन सा उसे उत्साह नहीं सकता। आप देख लीजिए क्योंकि प्राप्त होता है, पर वो समझ ही नहीं पाता पैसे होने पर भी मनुष्य की लालच खत्म अपने को कि मैं क्या हूँ। मेरे पास भण्डारा नहीं होती उसको लगता है कि आज ये तो कल वो होना चाहिए। वो है. तो वो गली-गली में भीख माँगता फिरू? जो चीज़ होना चाहिए। उसकी लालच खत्म ही नहीं मेरे अंदर में उमड़ रही है उसको छोड़कर होती उस पैसे से क्योंकि उस पैसे में क्यों मैं ऐसी-ऐसी चीजों के पीछे दौड़ता समाधान देने की शक्ति नहीं। गर आपके है? द्वेष, नाराज़गी, अहंकार आदि बड़े-बड़े है जिस चीज का तो मैं क्यों दर-दर में, हूँ? पास पैसा है तो समाधान इसमें है कि बो गलत दिमाग और गलत विचारधारा से किसी को दे दें। गरीबों को बाँट दें, उनका ऐसा होता है। बहुत से लोगों को लगता है दुःख हल्का करें। तब आपको समाधान कि दुनिया में गर आपके पास पैसा हो तो मिलेगा। नहीं तो पैसे का कोई अर्थ नहीं । आप बहुत बड़े आदमी हो मैंने आज तक जो पैसा आप बाँट नहीं सकते वो पैसा किसी भी पैसे वाले को सुखी नहीं देखा। लक्ष्मी हो ही नहीं सकता। लक्ष्मी तत्व में मेरे पास जितने पैसे वाले आते हैं उनकी मैंने आपसे बताया है एक हाथ से देना शक्ल से ही पता चल जाता है कि ये कोई और दूसरे हाथ से आश्रय। तो दूसरों को बड़े भारी दुःखी आदमी हैं और ये पता गुर आप आश्रय दे रहे हैं. अपने पैसे के चलता है कि ये कोई करोड़पति हैं। इसके साथ. तो आपको आनंद आएगा। गर आप 3 20020324_Sarvajanik Karyakram - Public Program_New Delhi.pdf-page3.txt Original Transcript : Hindi दुनिया की भलाई कर रहे हैं अपने पैसे से से होता है ऐसे सुन्दर तरीके होते हैं पैसे तो उस पैसे से आपको आनंद आएगा। देने के लेने के नहीं, देने के और उसमें गर वही पैसे आप संभाल-संभाल कर रखें, कभी-कभी इतना आनंद आता है कि उतना उसका पहाड़ बनाएँ और उस पर बैठ आनंद लाखों खर्चने से भी नहीं आता। ये जाएें, कोई भी आपके शक्ल में उसकी तो बात है कि मनुष्य कभी-कभी सिर्फ खुशी नज़र नहीं आएगी। ऐसे लोगों को अपनी शोहरत के लिए पैसे देता है। ये लोग जानते हैं और हँसते हैं उन कोई खास बात नहीं। पर तो भी वो बेहतर बहुत पर। देखते हैं कि ये आदमी इस तरह से है बनिस्वत इसके कि सारा पैसा अपने जा रहा है। ये कर रहा है। पर अब करे पास पड़ा रहे। अब दूसरी बात है इंसान को शौक है आएगी वो कभी समझेगा ही नहीं । वो कि वो सत्ता कमाए। सत्ता क्यों कमाए? सम्हलेगा नहीं और उस पैसे का आनंद सत्ता में क्या है? आपकी अपने ऊपर तो क्या? जब तक उसको अपनी अक्ल नहीं नहीं उठाएगा आज पैसा आया तो कोई सत्ता है नहीं। दुनिया भर में आप सत्ता और नई चीज़ में चला गया और पैसा करना चाहते हैं! माने हमारी बड़ी भारी आया तो वो और किसी आदत में चला Position हो जाए। सत्ता हो जाए, सब गया मनुष्य के पास पैसा आते ही न जाने लोग हमारे को सैल्यूट मारें। इसमें कौन वो बाहर की गन्दी -गन्दी बातें सीखने लग जाता है। ऐसी कोई चीज़ होगी ना पैसे में उतरते हैं तो कोई उनकी ओर देखता भी जिससे आदमी खराब ही क्यों सीखता है? नहीं। कोई उनको पूछता भी नहीं और वो शराब क्यों पीता है? औरतों के पीछे क्यों बड़े दुःखी हो जाते हैं कि एक जमाने में तो भागता है? पैसा आते ही साथ ऐसी कौन मेरे सामने दौड़ते थे अब मेरे पीछे भी नहीं सी बात होती है कि वह बिगड़ता ही जाता दौड़ते। ये ऐसी कौन सी बात है सत्ता के है, बिगड़ता ही जाता है, बिगड़ता ही जाता पीछे में लोग जाते हैं। एक साहब से मैंने है। या तो वह जेल में चला जाएगा, या पूछा तुम पैसा क्यों खाते हो? तुमने सत्ता सर्वनाश हो जाएगा। यही पैसा जो आपको पाई है तो उससे कुछ अच्छा काम करो । शोभा दे सकता है वह आपके सर्वनाश का कुछ लोगों की मदद करो। तो तुम सत्ता में कारण बन जाता है। प्यार के संगति से आकर के ऐसे गलत काम क्यों कर रहे आप यही सोचते रहते हैं कि किसको क्या हो? पैसे क्यों कमा रहे हो? झूठ क्यों दिया जाए। उसको किस तरह से सुशोभित बोलते हो? तो उन्होंने कहा मैंने इतनी किया जाए? उसको किस तरह से प्यार जताया जाए? और बड़े-बड़े सुन्दर तरीके मैंने कहा, "तुमने ये लागत लगाई क्यों?" सा सुख है? अंत में यही लोग जब सत्ता से लागत लगाई, वो तो मुझे निकालनी है। तो 4 20020324_Sarvajanik Karyakram - Public Program_New Delhi.pdf-page4.txt Original Transcript : Hindi है। नहीं तो बेकार के इसलिए क्योंकि आप जीतने वाले नहीं थे। आज अमर हो गया आप अगर ऐसे ही खड़े हो जाएँ तो कोई लोगों को कौन जानता है। बेकार के, नहीं वोट देता। तो इसलिए आपने पैसे जिन्होंने अपनी सत्ता में सबको तकलीफ लगाए कि इस पैसे से मैं जीत जाऊँ। तो दी, गलत-गलत काम करे। थोड़े ही दिन जब तक आप लोगों को पैसा देते रहें में उन पर भी लोग उंगलियाँ उठाने लग तब-तक लोग समझेंगे कि आप किसी जाएँगे इस तरह के लोग संसार में, मैं काम के हैं। या कोई गलत काम करने मानती हूँ, बहुत कम हैं इसलिए क्योंकि लग जाएं तो लोग होंगे ये वास्तविक हम लोग बहुत चालाक हैं। अपने को बहुत | बात है। मैं कोई नई बात नहीं कह रही होशियार समझते हैं। हूँ। ये रोजमर्रा हम देखते हैं। पर वही आदमी, जब उसकी सत्ता खत्म हो जाती चकारी करते हैं। चकमा देते हैं, पैसा तो कोई उसे पूछता भी नहीं। कोई उसे बनाते हैं। इस तरह की झूठी बातें करते देखता भी नहीं। कोई उसे जानता भी हैं। उनका क्या हाल होता है वो मुझे बताने नहीं। कोई उसका मित्र भी नहीं होता। तो की कोई जरूरत नहीं है। तो ये सब करने क्या फायदा। सारी जिन्दगी अपनी सत्ता में की जरूरत क्या है? किसके लिए आप फँसे रहे। सारी जिन्दगी अपनी सत्ता के कर रहे खुश 1 तीसरे तरह के लोग होते हैं जो चोरी हैं? कोई कहेगा कि हमारे घमण्ड में फँसे रहे और आज आप कहाँ बाल-बच्चों के लिए कर रहे है। कल यही हैं? और अब आपको क्या मिला? ये मैं बाल-बच्चे आपको जूते लगाएँगे कि नहीं? नहीं कहती कि आखिरी दम तक हर आदमी आपका मान क्यों करेंगे? आपमें कोई चरित्र को उसके प्यार की शक्ति से कुछ लाभ नहीं तो आपका मान कौन करेगा? आपको होता ही है पर सबसे बड़ी चीज़ है जो कौन देखेगा? ये समझने की बात है कि ये आदमी प्रेम करता है और उसके बाद में सब व्यर्थ की लालसाएँ हैं और ये आपको उसके प्यार की जिसके ऊपर छाया पड़ती आपसे दूर रखती हैं। आप अपने प्यार को है, जिसने उसका उपयोग किया हो, जिसने समझिये। आपकी जिन्दगी में कोई ऐसे भी उसका दर्शन किया हो, जिसने भी इंसान आए जिन्होंने आपको प्यार दिया हो, उसका जलवा देखा है, वो पुश्त-दर-पुश्त उनको आप जिन्दगी भर नहीं भूल सकते याद रखा जाता है। याद ही की बात नहीं चाहे उन्होंने पैसा नहीं दिया; कुछ नहीं पर वो ही जलवा दूसरों में भी आता है दिया। पर उनका प्यार, प्यार जरूर याद और दूसरे भी अच्छा काम करने लग जाते रहेगा और आप याद करेंगे कि इन्होंने मेरी हैं और दूसरे भी उसी की तरह होने का ओर बहुत प्यार से देखा। मेरी ओर बहुत प्रयत्न करते हैं। ऐसे ही आदमियों का नाम प्यार का हाथ बढ़ाया था। ये समझने की 20020324_Sarvajanik Karyakram - Public Program_New Delhi.pdf-page5.txt Original Transcript : Hindi बात है कि हम रोज़ देखते हैं। कोई नई घिनौनी बात है। ऐसा घिनौना काम करना बात तो नहीं, कोई इतिहास की बात तो हमारे संस्कृति में मान्य नहीं है। हमारी नहीं, कि कोई किताबों में लिखी बात नहीं। कुछ बाईबल पढ़ने की ज़रूरत नहीं, कुरान एक दिन सारे संसार का मार्गदर्शन कर को जानने की ज़रूरत नहीं ये रोज़ की सकती है पर हमी अपनी संस्कृति को बात है। जब ये बात हम देख रहे हैं तो छोड़ कर के बैठे हैं! हर तरह से लज्जाशील हम किसलिए तलवार लेकर निकले हैं? रहना चाहिए। ऐसे बताया जाता है कि ऐसे हमारे अंदर जो बहुत सारी विकृतियाँ औरतों को लज्जाशील रहना चाहिए। ऐसा हैं ं है कि बाहर से सीख करके लोग ऐसे संस्कृति बड़ी ऊँची है । भारतीय संस्कृति वो इस तरह से बाहर आती हैं। मैं कहूँगी कि ईमानदारी की बात है कि कितने कपड़े पहनने लग गए कि जिसमें लज्जा लोग हमारे देश में, जैसे कोई छूत की को तिलांजली दे दी गई। लज्जा-वज्जा बीमारी लग रही है, पैसा खाते हैं। किसी कुछ नहीं। अरे भाई देवी के लिए कहा से पूछो, "ये कौन हैं?" ये पैसा खाते हैं "वो कौन हैं?" वो पैसा खाते हैं। जिसको अंदर अगर देवत्व है तो आप लज्जाशील देखो वो ही पैसा खाता है। और कोई रहेंगे। आप बेशरम जैसे कपड़े नहीं पहनेंगे। उनका वर्णन ही नहीं । ये ही बताया जाता आप बेशरम जैसे नहीं घूमेंगे। और अगर है कि ये पैसा खा रहा है, वो पैसा खा रहा घूमते हैं आप तो आप में देवत्व नहीं है है। अरे खाना वाना नहीं खाते, पैसा ही तो किसी ने कहा कि हनुमान जी तो नहीं खाते हैं? ऐसे लोगों को भी आप देखिए कि कपड़े पहनते हैं। तो क्या आप हनुमान जी गया है "लज्जारूपेण संस्थिता।" आपके अंत में उनका क्या हाल होता है। एक बार हैं? ये भी कोई Explaination है कि हनुमान हम ऐसे ही गए थे वहाँ बहुत भीड़ थी तो जी नहीं पहनते तो हम भी नहीं पहनते। कुछ लोग थे बेचारे सीधे-साधे। उन्होंने अब हनुमान जी को क्या पहनने की ज़रूरत नाक पर ऐसे हाथ रख लिया। मुँह पर थी? भई तुम लोग इंसान हो और तुम इस हाथ रख लिया। बात क्या है? वो बोले, ये देश के वासी हो तुमको क्या ज़रूरत है जी जैसे हम कपड़े नहीं पहनेंगे। पैसा खाया है। मैंने कहा आप लोगों ने बाकी देखिए तो सब लोग पहनते हैं। ऐसा नाक मुँह क्यों बंद करे हैं। कहने लगे कि कोई है जो कपड़े ठीक से नहीं पहनता तो इनको सूँघने से हम लोग भी वैसे ही हो हनुमान जी का उदाहरण ले लिया। महावीर जाएँगे ऐसा हमें डर लगता है। अरे ये जी का, महावीर जी एक बार अपने ही प्रांगण में ध्यान कर रहे थे तो श्री कृष्ण जी हमारे संस्कृति के हिसाब से ये बड़ी ने उनकी परीक्षा लेनी चाही। तो उनसे जा साथ जा रहे हैं न, इन्होंने बहुत देश का कि हनुमान बात बड़ी घिनौनी है। 20020324_Sarvajanik Karyakram - Public Program_New Delhi.pdf-page6.txt Original Transcript : Hindi कर कहा श्री कृष्ण जी ने कि "तुम मुझे लज्जा होती है। पर इंसान में लज्जा न हो अपना कपड़ा दे दो।" और उनका कपड़ा और बड़े अपने को समझते हैं, हम बड़े आधा फट गया था, तो भी वो ध्यान में थे। Modern हैं और ये हैं वो हैं। अरे भई अगर "ये आधा भी हमको दे दो " उन्होंने दे लज्जा नहीं है तो देवी तत्व से तो आप दिया। और फिर चले गए अपने शयन ग्रह हट गए। देवी तत्व में कहा जाता है कि में, अपने सोने की जगह में, जा कर अपने "लज्जारूपेण संस्थिता। इसलिए कभी कपड़े-वपड़े बदल लिए। वो एक छोटा सा -कभी उसका अतिक्रमण भी कर देते हैं। बच्चा बन के आए थे। वो ठीक है। वो चले होता है कभी-कभी। वो नहीं करना चाहिए। गए। अब देखिए कि उनके Statues बना अब आप घूँघट निकालो, बुका पहनो इसकी रहे हैं। इतने गंदे लोग हैं, इनको कोई शर्म कोई ज़रूरत नहीं है। जो चीज़़ लज्जाशील नहीं। इस तरह से महावीर जी का अपमान है वो उसकी आँखों में है उसको ज़रूरी करते हैं। ये तो हमारे यहाँ गलत बात है नहीं कि ये ढोंगपना करे। इसकी कोई कि जो गलत चीज़ है, उसी को ले करके ज़रूरत नहीं। पर मनुष्य में भी अतिक्रमण चलेंगे। उसको फट से पकड़ लेगे और कर जाए। मनुष्य में क्या है कि किस तरह उसी को ले कर के दिखाएँगे, सौ बार । से वो एक दम से इस तरह से विक्षिप्त हो मैं कहती हैं कि कुछ अक्ल रखो। ऐसे जाता है? कुछ बताना समझ में नहीं आता कहीं होता है? बिल्कुल शुरूआत में बताते कि क्या बताएँ । कुछ भी चीज़ ले लो, हैं कि आदम और हव्वा। उसमें से हव्वा उसको विक्षिप्त कर देना। ठीक है स्त्री में को जब पता चला उसको जब अनुभूति लज्जा होना। और लज्जा उसके अंदर की हुई कि हमें आगे का जानना है वो जो चीज़ है उसके अंदर में स्थित है ये देवी साँप था वो स्वयं साक्षात् कुण्डलिनी थी। तत्व-हरेक स्त्री में, हरेक पुरूष में लज्जा उसने जब बताया कि तुमको ज्ञान का एक देवी तत्व है। ऐसा कहते ही साथ वो फल प्राप्त करना है तब उसी वक्त उनको गए और चलो अब पर्दे लगाओ, ये करो वो ये ज्ञान हुआ कि हम ऐसे नंगे घूम नहीं करो, घुंघट निकालो। अरे भई ये अंदर की सकते हैं जानवरों जैसे हमें कुछ पहनना चीज़ है। स्त्री के अंदर की चीजज़़ है । चाहिए । फौरन उन्होंने पत्तियों से अपने लज्जारूपेण संस्थिता। और उसमें अनेक कपड़े बनाये और पहन लिए। सर्वप्रथम ये बातें निहित हैं अब जैसे छोटी सी बात है ज्ञान होना चाहिए कि हम इंसान हैं जानवर अपने दोनों कंधों में दो चक्र हैं। Right में नहीं। हम जानवर जैसे नहीं रह सकते। । हालाँकि कुछ-कुछ जानवर इंसान से भी ये हम सिद्ध कर सकते हैं । आप उसको अच्छे होते हैं मैं मानती हूँ पर उनको भी खोले फिरोगे तो नुकसान होगा आपको । 1 श्री" चक्र है और Left में 'ललिता' चक्र है 20020324_Sarvajanik Karyakram - Public Program_New Delhi.pdf-page7.txt Original Transcript : Hindi होना ही है । किस तरह का नुकसान होगा शरमाऐंगे। लेकिन अंदर से प्यार। प्यार ही वो मैं बताना नहीं चाहती। कभी विस्तारपूर्वक उनका जीवन और प्यार उनके जीवन का बताऊँगी, पर क्यों ऐसा करते हो? क्या सार। दूसरा उनको किसी चीज़ से कोई ज़रूरत है? पर पुरूष में ज़रूरी नहीं । नहीं। आप उनको कोई और चीज़ दे दीजिए पुरूष में ये बात नहीं। उनमें ये दोनों चक्र वो समझ नहीं पाएँगे इसमें क्या विशेषता बिल्कुल पूर्णतया खुले हुए हैं पर स्त्री के है । पर उनकी माँ को हटा लीजिए या लिए क्योंकि वह शक्तिशाली है उसके लिए उनकी नानी से हटा लीजिए तो बड़ा बुरा ति जरूरी है उसे ढकना। अब ये समझने की हाल हो जाएगा। ये किस वजह से होता बात है इसमें कोई दकियानूसीपने की बात है। ये इतना छोटा सा बच्चा ये चीज़ कैसे नहीं। जिस चीज़ में आप दकियानूसी हैं वो जानता है और हम लोग क्यों नहीं जान बेवकूफी है। लेकिन जिस चीज़ में आप पाते? हम लोग ये क्यों नहीं जान पाते कि सतर्क हैं वो चीज़ ठीक है। सो सबसे बड़ी ये चीज़ इस बच्चे में इतनी प्रगल्भ है, चीज़ है कि प्यार में मनुष्य एकदम सतर्क इतनी developed है और हम लोग जो होता है। कहीं कुछ हो गया उसे पता चल अपने को बड़े भारी विद्वान समझते हैं जाता है। कहीं कुछ हो गया उसे समझ में हममें क्यों नहीं? क्योंकि विद्धता जो है वो आ जाता है। कहीं कुछ बात हो जाती है अंधेरे में हम विद्वान हैं अंधेरे के, उजाले वो परेशान। कहीं कोई औरत है, बेचारी के नहीं। हमें ये नहीं मालूम कि कौन सी उसने आत्महत्या कर ली। तो एक मुझे चीज़ हमें आह्लादित करती है। कौन सी लड़की मिली। मैंने कहा तुम क्यों परेशान चीज हमें आडोलित करती है। कौन सी हो। कहने लगी उसने आत्महत्या क्यों चीज़ से हमें सुख प्राप्त होता है और दूसरों की। छोटी सी लड़की 10 साल की मैंने को समाज को किस चीज़ से सुख मिलेगा कहा तुमसे किसने बताया। किसी ने बताया इस चीज़ को हम समझते नहीं। हम लोगों नहीं मैंने अखबार में पढ़ा कि उसने ने अपनी बना ली हैं प्रणालियां कि भाई आत्महत्या कर ली। अब ये जो खिंचाव ऐसे अवदान पहनो तो सुख मिलेगा। किसी अनभिज्ञ इंसान से, unknown आदमी से हो, ये क्या बात है। और छोटे बच्चों में में मालाऐं पहन के घूमो, ये करो वो करो । ये होता है। बात ये है-बच्चे जो हैं तो हम बहुत बड़े आदमी हो गए। हमारी अब बड़े आदमी हो गए, गले में, कण्ठ बहुत बहुत ही ज्यादा निष्पाप, innocent. दुनिया पूजा करेगी। हमें बहुत बड़ा वो निष्पापिता में, स्वच्छता में उनको खसोटता समझेगी। लेकिन ये अपने से भी धोखा है, उनको दिखता है। गलत काम ये नहीं देना है और लोगों को भी धोखा देना है। होना चाहिए। वो रूठेंगे आपसे, वो आपसे गुर आपको अपने को धोखा देना है तो देते 8. 20020324_Sarvajanik Karyakram - Public Program_New Delhi.pdf-page8.txt Original Transcript : Hindi हम बह गए दुनिया भर की चीजे होती ही । रहिए। अंत में उसका फल आप पाइयेगा दुनिया समझ जाएगी कि आप कितने गहरे रहती हैं। चलती ही रहती हैं। उसकी गर पानी में हैं। सबसे बड़ी चीज़ है कि जो ऐसी बात, किस बात से आपको आनंद आपका धन आपके अंदर प्यार का सागर आएगा ये देखना चाहिए। जब आप आनंद है उसको आप प्राप्त कीजिए । सहजयोग का यही कार्य है सहजयोग कोई कहे कि मुझे बड़ा आनंद आ रहा है आपकी कुण्डलिनी जागृत करता है। तो ये कोई कहने की बात तो नहीं है ये तो कुण्डलिनी आपके जीवन का पूरा छाप है। होने की बात है। पर जब ये घटित होता है उसको उठा करके और सहस्रार में बैठाना। तो कुछ कहना नहीं पड़ता। अपने आप ही सहस्रार आडोलित हो जाता है, प्रकाशित दिखाई देता है। आपका जीवन ही प्रज्जवलित हो जाता है और उससे आपको आनंद के हो जाता है और आपके जीवन से हज़ारों का अनुभव करेंगे. उसी से आनंद आएगा। है। आप देखते हैं लोग उसे प्राप्त करते हैं। आनंद प्राप्त सागर का अनुमव होता कि आप आनंद का सागर हो गए। फिर करते हैं। आज सहजयोग में आप लोग आप देखते हैं कि आप प्यार का सागर हो आए और यहाँ आकर आपने भी उस चीज़ गए। आपको आश्चर्य होता है कि आप तो को पा लिया आपका भी संबंध हो गया ऐसे कभी थे नहीं। आप ऐसे कैसे हो गए। Connection हो गया अब इसको जमाए अरे आप थे आप को मालुम नहीं था। रखो और उसका आनंद उठाओं। उसके अब कुण्डलिनी ने आपका संबंध कर दिया । आगे बाकी सब चीजे तुच्छ हैं। कोई लिखेगा अब ये देखिए । इसका संबंध ये जो चारों माँ अभी मैं पार तो हो गया पर मुझे खुशी ओर फैली हुई बिजली की शक्ति है उससे ही नहीं होती ये तो ऐसा ही है कि हो गया। अब देखने को तो इतना छोटा Connection कुछ कम है। माँ मैं पार तो 1 सा लग रहा है। पर इसका संबंध होते ही हो गया पर अभी मैरे घर में पैसा नहीं साथ बिजली क्रियान्वित हो गई। ऐसे ही आया। इसका मतलब आप पार नहीं हुए। कुण्डलिनी का संबंध होते ही आप कार्यान्वित ऐसे बकवास जितने लोग करते हैं उनकी हो जाते हैं। जिन सहजयोगियों ने सहज जो चिट्ठियाँ आती हैं वो मैं बंद करके को पाया है। मैं कहुँगी इसको सहज से रखती हैँं और उनसे कहती हैं कि तुम पाया है। और पाया क्या है, वो प्यार का ज़रा थोड़ा और अभी try करो। जब आदमी सागर जो हमारे मस्तिष्क में, जो हमारे पार हो जाता है तो वो बदल ही जाता है। सहस्र में क्या कहना चाहिए, दबा हुआ है उसकी इन्सानी मोहब्बत प्यार में बदल चो आज खुल गया। उसका संबंध हमारा जाती है। वो एक दूसरा ही प्राणी हो जाता हो गया और वो बह गया । उसके प्रवाह में है उनकी शक्ल ही बदल जाती है। कुछ 20020324_Sarvajanik Karyakram - Public Program_New Delhi.pdf-page9.txt Original Transcript : Hindi देखते ही बनता है। अभी एक साहब आये से आप गलत रास्ते पे जाते हैं। स्वयं को थे इंग्लैण्ड से, बड़े मरीज, बीमार, मरीगल्ले नष्ट करने का Self destructive काम करते लग रहे थे। अभी आए मैंने पहचाना नहीं। हैं। तो क्या फायदा ऐसे अहंकार से कि आपने पहचाना नहीं। मैंने नहीं पहचाना जिससे आप अपने ही को नष्ट करते हैं? भाई, तुम कौन हो? मैं वो हूँ। और कह उसका बोलना अलग, चलना अलग, ढाल कर पैर पर गिर गए। मेरे भी ऑखों से अलग। और उस अहंकार में वो किसी से आँसू आ गए। जो आदमी अपने मरने के मिलते नहीं। किसी से उनका पटता नहीं। दिन गिन रहा था आज उसका ये हाल हो, वो अपने अलग रहते हैं। मुझे ये आदमी पसंद नहीं। मुझे वो आदमी पसंद नहीं। वो और ये अहंकार की जो बीमारी है इसका कभी भी किसी भी तरह से सम्मिलित नहीं तो नाम लेते ही गला सूख जाता है। ऐसा होते कभी भी वो दूसरों की बात नहीं ये पागलपन है। ऐसा ये स्वंय को नष्ट सुनते अपनी सुनाते रहते हैं। ऐसे अहंकारी करने वाला एक राक्षस है जो कि आपको आदमी का जीवन माने मरने से भी बदतर। एकदम खत्म कर देगा और आप उसको एक साहब मैं, जानती थी, बड़े अहंकारी Justify करते रहते हैं। उसको आप कहते थे बहुत बड़े आदमी थे पालर्लियामेंट में थे हैं ठीक है ठीक है। इसलिए मैंने किया जाने कहाँ-कहाँ । पर जब वे मरे हैं तो उसलिए मैंने किया। किस लिए किया हो चार आदमी उनको उठाने के लिए नहीं सो सिर्फ तुम्हारे अंदर अहंकार भरा है। मिले। चार आदमी । तो उनको किराए पर अहंकार इंसान में भरना तो इतना खराब चार आदमी बुलाने पड़े कि भाई इनकी है कि उससे खराब तो मैं सोचती हूँ कि लाश को उठाओ। ऐसे अहंकार से क्या कोई चीज़ हो ही नहीं सकती। मैं कोई फायदा कि मरते वक्त वहाँ पर चार आदमी विशेष हूँ मेरा ऐसा है। और फिर उससे भी नहीं थे और कोई रिश्तेदार भी नहीं । जब वो देखता है कि मुझे कुछ लाभ नहीं कोई मिलने वाला भी नहीं। कोई कहने हुआ। लोग मुझे देखते भी नहीं। कोई मुझे वाला भी नहीं । इंसान से मानो उठ गए पूछता भी नहीं। तब वो ठीक होते हैं। वो। और उनका मानो कुत्ता था वो भी नहीं फायदा क्या? पूरी तरह से आपने अपना वहाँ खड़ा हुआ। मैने कहा भई हद हो गई गया। नुकसान कर लिया। उसके बाद आप इस आदमी ने ऐसा कौन सा पाप कर्म अहंकार, इसको कहते हैं ठीक करना। हर किया सिवाय इसके कि उसमें बहुत अहंकार एक चीज़ से अहंकार चढ़ता है। पैसा हो था इस अहंकार में उनकी यह दशा हो तो, सत्ता हो तो, और भी कोई चीज़ हो तो गई कि मरते वक्त उनको कोई उठाने अहंकार चढ़ता है। और फिर उसी अहंकार वाला भी नहीं! 10 20020324_Sarvajanik Karyakram - Public Program_New Delhi.pdf-page10.txt HINDI TRANSLATION (English Talk) Scanned from Hindi Chaitanya Lahari मैं प्रेम के विषय में बहुत कुछ बता चुकी क्या लाभ होगा। हूँ परन्तु मुझे ये सब हिन्दी में बताना पड़ा | परन्तु प्रेम के विषय की अभिव्यक्ति हिन्दी में भी जाएंगे तो वो आपसे बैठने के लिए में ही बेहतर होती है। आप देखते हैं कि कहेगा, दूध आदि पेय आपको पेश करेगा । प्रेम करने की क्षमता भारत में बहुत अधिक उनके हृदय बहुत विशाल हैं। आजकल है। अपने प्रेम के सहारे लोग जीवन बिता हम लोग भी बहुत धन लोलुप होते चले जा लेते हैं। लोग एक दूसरे को अपने प्रेम के रहे हैं, इसमें कोई सन्देह नहीं । इस देश में माध्यम से समझते हैं। निःसन्देह पश्चिमी बहुत अधिक धन नहीं है इसीलिए लोगों में संस्कृति में रंगे भारतीयों में इस गुण का प्रेम करने की क्षमता बनी हुई है। इस बात अभाव है। पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित पर आपने ध्यान दिया होगा आप सब भारतीय के मन में तो अपने देश के लिए लोग आजकल यहाँ हैं, आप देखते हैं कि भी प्रेम नहीं है अपने देश को प्रेम करने भारतीय कितने प्रेममय हैं। परन्तु आधुनिक वाले बहुत से लोग हैं। हमारे यहाँ भी ऐसे भारतीय ऐसे नहीं है। आधुनिक भारतीय से लोग हैं। कुल मिलाकर भारतीय तो आप लोगों का मुकाबला करते हैं। मैं भारत में आप यदि किसी निर्धन के घर बहुत लोग अत्यन्त प्रेममय हैं। आप यदि किसी उनके विषय में कुछ नहीं कह सकती। के घर पर जाएं तो वो आपसे प्रेम करते हैं परन्तु पारंपरिक लोग, भारतीय संस्कृति में आपको खाना आदि खिलाकर वो बहुत विश्वास करने वाले वृद्ध लोग अत्यन्त प्रसन्न होते हैं। घर में यदि कुछ उपलब्ध प्रेममय हैं। यही कारण है कि तीन सौ वर्ष न हो तो वो तुरन्त बाहर से लाते हैं। वे के अंग्रेजी साम्राज्य के बाद भी हम जीवित अपने मित्रों को बताते हैं, टेलिफोन करते हैं और हमने अपनी संस्कृति को बनाया हैं। अतिथि की वो सेवा करते हैं। यह हुआ है देश के प्रति उनके प्रेम के कारण प्रेम - भाव पूरे विश्व में अन्यंत्र कहीं नहीं है। ही ये सब संभव है। ऐसे प्रेममय लोग कहीं भी नहीं। अतिथि की सेवा में प्रायः आपको कहीं अन्य नहीं मिलेंगे । किसी गाँव लोगों को विश्वास ही नहीं है। अन्य देशों में या कहीं अन्यंत्र आप जाएं तो लोग में कहीं भी आप जाएं, लोगों का नजरिया आपकी सहायता करने का प्रयत्न करेंगे । अत्यन्त लेखे जोखे वाला होता है कि इससे आपके विदेशी होने के कारण वे आपका ज 11 20020324_Sarvajanik Karyakram - Public Program_New Delhi.pdf-page11.txt Hindi Translation (English Talk) सम्मान करेंगे विदेशी या विदेश से आया उन्होंने सब कुछ लौटा दिया। अतः विदेशी व्यक्ति हमारे लिए सम्मानजनक होता है। हमारे लिए सम्मानजनक होते हैं, प्रेम के आपको पुकारने या निमंत्रित करने के उनके तौर-तरीके अत्यन्त सम्मानजनक होगे। विदेशियों के प्रति यहाँ के लोग अत्यन्त योग्य। परंतु पश्चिम में मैंने ये बात कहीं भी नहीं देखी । नि:संदेह सहजयोगी इस मामले में भिन्न हैं । पश्चिमी देशों में विदेशियों सम्मान दर्शाते हैं। परन्तु विदेशों में किसी अन्य देश से पर शक किया जाता अ० है। अत्यन्त आश्चर्य की बात है कि ईसामसीह के देश आए हुए व्यक्ति को बहुत तुच्छ माना में इस प्रकार का स्वभाव व संस्कृति कैसे आई! उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य तो प्रेम था। जाता है। आप यदि विदेशी हैं तो आप उनकी दृष्टि में बहुत तु चछ हैं। ओह, विदेशी हैं. ठीक है! फिर क्यों उन्हें मानने वाले पश्चिमी परन्तु यहाँ पर विदेशियों के साथ देशों में इस प्रकार की संस्कृति पनपी, मैं नहीं समझ पाती। ऐसा व्यवहार नहीं होता। यहाँ पर लोग आपकी सराहना करें गे, आपको समझेंगे और आपको उनके सम्बन्धों की अभि -व्यक्ति में किसी को प्रेम करना प्रेम करेंगे। अपने प्रेम को वो अभिव्यक्त करेंगे। मैंने कभी किसी अपराध माना जाता है। अब आप लोग सहजयोगी को विदेश में अपमानित होते यहाँ आए हैं, आप सहजयोगी हैं, आप उन्हें हुए या कष्ट उठाते हुए नहीं देखा। वे ऐसा ये सब सिखाएं। उन्हें केवल प्रेम एवं नहीं करते। एक बार ऐसा हुआ कि चोरी करुणामय ही नहीं होना विदेशों से आए हो गई और चोर कैमरे आदि ले गए । तो लोगों की भावनाओं को भी समझना है। मैंने उनसे कहा, कि वो विदेशी हैं आपके निर्धन देशों से आए लोगों की देखभाल भी विषय में क्या सोचेंगे। छोटे-छोटे बच्चों ने करनी है। इस चीज़ का इतना प्रसार होना ये कार्य किया था मेरी बात को सुनकर चाहिए कि हम निर्धन लोगों की सहायता में 12 20020324_Sarvajanik Karyakram - Public Program_New Delhi.pdf-page12.txt Hindi Translation (English Talk) जुट जाएं और कष्टों से धिरे लोगों को प्रेम धर्म के प्रचार के लिए धन दिया करते थे । करने लगे। ये गुण सभी विदेशियों में पनपना आपको केवल इसलिए लोगों की सहायता आवश्यक है, विशेष रूप से सहजयोगियों करनी चाहिए क्योंकि उन्हें सहायता की में कि वे उन लोगों के प्रति अपने हृदय में आवश्यकता है। हो सकता है कि अगले प्रेम विकसित करें जिनके पास वो सब जन्म में आपको भी सहायता की आवश्यकता कुछ नहीं है जो हमारे पास है मैं आपको पड़े। अत: बेहतर होगा कि इस प्रकार की बताना चाहूँगी कि आस्ट्रिया से आई एक उदारता, प्रेम और सूझ-बूझ को अपना लें महिला से मिलकर मुझे बहुत प्रसन्नता और सभी मानवीय समस्याओं को समझें। हुई। वह यतीमखाना शुरु करना चाहती मैं आपको बताती हूँ कि हमारी सारी थी। कहने लगी. "श्रीमाताजी हमें भी अवश्य समस्याएं, विश्व की सभी समस्याएं, सच्चे कुछ करना चाहिए।" मुझे बहुत प्रसन्नता प्रेम से सुलझाई जा सकती हैं। इन सभी हुई मैंने उससे कहा कि चिन्ता मत करो मैं समस्याओं का समाधान हो सकता है चाहे तुम्हें सभी कुछ दूंगी। मैं तुम्हें भूमि दूंगी ये भारत की समस्याएं हों या अन्य देशों और भवन भी बना कर दूंगी तुम्हें केवल ये की। केवल प्रेम की कमी है । अतः अनाथालिय चलाना है। कहने लगी आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करें; आत्मसाक्षात्कार श्रीमाताजी हम तो इस कार्य के लिए 80 प्राप्त करके, चाहे इस बात को आप माने लाख रुपये एकत्र कर चुके हैं। हे परमात्मा, तुमने किस प्रकार इतना धन एकत्र कर लिया? सभी से ये धन एकत्र किया गया। या न माने, आप प्रेम सागर में उतर जाएंगे। परमात्मा आपको धन्य करे। मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। अन्यथा लोग ईसाई 13 20020324_Sarvajanik Karyakram - Public Program_New Delhi.pdf-page13.txt ORIGINAL TRANSCRIPT ENGLISH TALK I have already spoken a lot about love. It is the loving capacity in India that I was referring to. On the whole they love you. Once you go to their house they entertain you with all hospitality. In India especially you go to a poor man's house. They will offer you milk still. Especially, the traditional people who still hold the culture are extremely loving! That is the reason why we are still surviving even after 300 years of British rule. On the topic of foreigner, Shri Mataji said, Indians basically love people. If I say you foreigner. It doesn't mean anything wrong. You are appreciated and Indians express their love. You are safe and secured. But if you are told as foreigner outside this country may be there you may be troubled or something wrong is expressed. Of course there was something in the past that happened. But as I told them. There were kids who stole cameras and other items. But when I told them they are foreigners they immediately returned the items. You should also be kind and loving. All these should spread. We should come forward to help those who are not rich or are needy. I was extremely happy with an Austrian lady who told me Mother we are starting an orphanage. So I said, I would give you money assistance for land. But She said Mother we have already collected eighty lakhs for the same from Sahaja Yogis and also from outside. So that is the love and the understanding one should have within oneself. All the world problems can be resolved through love. That's why you must take your self-realization. You will all fall into the ocean of love. 14 20020324_Sarvajanik Karyakram - Public Program_New Delhi.pdf-page14.txt ENGLISH TRANSLATION (Hindi Talk) I pay my respect to the seekers of truth who have gathered here today. What is basically lacking everywhere is the Love. All persons take it as a mere word or expression. Love basically is the potential power within us. We do experience or feels it when we look at our Mother. What I am trying to say is that it is the Spirit enlightenment with in oneself. There is no discretion. It doesn't distinguish or is discrete between any animals or human. I sometime feel animals better understand the love. In fact the element of hatred should completely be finished from the human. Love is an ocean within and you find their tide within us. It is basically the power within us. By speaking of power one immediately takes it as something destructive state (Pralaya) but in fact it give us the inner peace. It is latent inside. It is covered inside. It is the power of love within ourselves that cleanse us and brings happiness and joy with in. If we see.... We have enemies residing within ourselves in the form of Rakshasa, cession and pleasure like consumption of liquor or spending on women. This money always goes into spending in sinful lifestyle. But at times by giving it to others you can get so much joy. Next I find persons run after power and position. Why after power and position? One feels everyone should salute me! Why? It is this power that when one descends down they then repent. They feel that once people used to run after me when I was in power and now they even do not like to come near me. Once I asked a person why do you want to possess power and position? He said that he wanted to do good to the people. But you know no body cares for a person whose powers and positions are lost. For the entire life one is entangled with power and position. What does he achieve? A person who knows how to love gets the actual recognition. He witnesses all this shortcomings and rise and falls of life style and it does not affect him. The third is the person who is pretends to be cleaver, like thieves who steals or robs or become imposter. Why are you doing this act? Who is going to respect you? These are basically the greed in and keep you away from yourself. A person is always remembered who gives love to all. May be he has not given money but he is remembered. He may not speak verses from Koran or Bibles or any thing but knows how to give love. so why coming out for waging war? Everywhere I hear he takes money ... he had taken (eaten...as in Hindi language) money. if that is the case why don't you eat money only? Once I saw a person is going and all others have covered their face and avoiding him. So I asked one what is the matter? He said Mother that man has taken (eaten) a lot of wrong practice and stinks. So, if we don't take care by covering ourselves we shall also be infected. Next, I find passion on wearing cloth. Putting on wrong cloth with fashion. You start giving explanations to0. You fashion like that and then say Hanumanji also wore no cloth! But, why you are human being why do you want to be Hanuman. Once, Shri Krishna came down to Shri Mahavira while he was meditating. He asked for his cloth and Mahavira gave his entire cloth out of generosity. But, now see people these days they are building and erecting Statues of Mahavira portraying him nude. In the beginning Adam and Eve were without cloths. Then the serpent came up from the fruit they had. The serpent was the Kundalini. When they got the awakening they got the knowledge and covered themselves up to cover their nudity. I don't understand why there is so much of shamelessness. What is human? Why are they so much distracted? one should possess Lajja (Shame) it is basically the "Devi tattwa" within human being especially the ladies. It is an expression from within. You have two Chakras in the two shoulders. One in the left is "Shri Lalit Chakra" and the one on the right is a Shri “Shrichakra". For ladies especially you must cover these two chakras and should not leave it open. I do not want to tell you what horrible disease you money through 99 66 15 20020324_Sarvajanik Karyakram - Public Program_New Delhi.pdf-page15.txt English Translation (Hindi Talk) contact. But in men however, it is not necessary while in ladies it is very sensitive and must cover the shoulders...then Speaking up on innocence Shri Mataji said... Once a young girl of 10 years asked after hearing from someone why someone had committed suicide? Just see what impact it really gives to the innocence of the child. It is the innocence within us that matters. Why such innocence is not within us? We are intellect of darkness! We are ignorant. How do you expect that you and bring happiness to the society? Now if you move around with garland in your neck and make people think that you are great human being... What is going to happen to others? The prime objective of life is to... could give joy So today you have come here. You have also got your connection. You be happy. One may say Mother, I have experience this but, still I could not find happiness or peace within or for that matter Mother I have attained this but, I am yet to gain money in home. You have to leave all these....and the connection! ... get Speaking on Ego Shri Mataji referred to a person... Once there was a gentle man came up to Me and said please save me. I could not recognize this diseased person at all. He was horrible with ego. Why then justify your ego's blunder .You actually go to a wrong path with ego.... Then She narrated another story ... Once, I knew a person who was an erstwhile parliamentarian who died. After his death there were not even four available near him to carry his body. Even he had a dog that did not turn up at the last stage. Why this should happen? Only because he had ego problem with him. One should forsake his ego. persons 16